बचपन में हमारे बहुत बड़े सपने होते हैं | कोई सचिन बनना चाहता है तो कोई कल्पना चावला | पर जैसे जैसे हम बड़े होते है , ये सपने कही खो जाते है , और हम दुनिआ की उसी भीड़ में शामिल होते जाते है , जिसमे कभी हम अपनी अलग पहचान बनाना चाहते थे | देखते ही देखते वक़्त निकल जाता है |
बस इसी एहसास को लिखा है ……
ख़्वाबों में खोया हुआ हूँ ,
सपनों में भी सोया हुआ हूँ |
पेड़ बनकर फल देने वाला बीज था ,
पर अभी तक मिट्टी में ही बोया हुआ हूँ ||
मिली थोड़ी सी कामयाबी , उसी में खुश मैं इतना हो गया |
और इसी ख़ुशी के साथ जीते जीते , न जाने वक़्त कितना हो गया ||
सोचा बहुत मेहनत कर ली है , जो मिल गया अब काफी है |
बचपन में जितने बड़े सपने देखे थे , सबसे हाथ जोड़कर माफ़ी है ||
बचपन में किसी को पायलट बनना था , तो किसी को बनना था साइंटिस्ट |
पर जैसे जैसे उम्र और जिम्मेदारियां बड़ी , कहानी में आ गया नया ट्विस्ट ||
धीरे धीरे चलते चलते , हम उसी भीड़ का हिस्सा बन गए |
और इस दुनिआं की लाखों कहानियो में से ,, किसी एक कहानी का किस्सा बन गए ||
सुबह उठना , तैयार होना , ऑफिस जाना |
इसी तरह मशीन बनकर , शाम को घर लौट आना ||
कभी कुछ मोटिवेशनल कहानियाँ सुनकर , दिल में जोश आ जाना |
और कुछ दिन बाद थक हार कर , वापिस उसी जिंदगी में लौट आना ||
अब हर दिन नया नहीं , बस वही पुराना होता है|
अपने दिल की ख़ुशी को मारकर , बस हमें पैसा कमाना होता है ||
हर दिन के कम्फर्ट जोन में , हमने खुद को ढाल लिया है |
कुछ नया करने पर इसके खो जाने का डर , हम सबने मन में पाल लिया है ||
बड़े सपने रहने दो , कम से कम छोटे तो पूरे हो रहे हैं |
यकीन मानिये यही सोच सोच कर हम , पूरे से अधूरे हो रहे हैं ||
और हाँ सबसे जरुरी बात ,,इस हम में ,, मैं खुद भी शामिल हूँ |
अपने सभी बड़े सपनों का , मैं खुद ही कातिल हूँ ||
खैर सब कुछ भूल कर , फिर एक नयी शुरुआत करते हैं |
बचपन में जितने सपने देखे थे , उन सबको फिर याद करते हैं ||
आलस भरी इस नींद को तोड़कर , चलिए कुछ ऐसा किया जाए |
कितना वक़्त बीत गया ,या कितना वक़्त बाकी हैं , सब भूलकर जिंदगी को जिया जाए ||
दीपक ✍️
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