उसकी मासूमियत देखकर चेहरे पर ख़ुशी बरसों बाद आयी ।
बारिश की कश्ती , परियों की कहानिया ,सब फिर से याद आयी ।।
इक वक़्त था , जब हर लम्हा नया होता था ।
तारों की छाँव में , मैं चैन की नींद सोता था ।।
गर्मी की छुट्टियों में , मामा के घर जाते थे ।
सुबह क्रिकेट खेलने के लिए , दोस्तों को हम खुद जगाते थे ।।
शक्तिमान , बर्फ का गोला , आम का बगीचा ।
उस मासूम ने इन सब की तरफ मेरा ध्यान खींचा ।।
बचपन की मासूमियत अब , भाग दौड़ में दब चुकी है ।
उम्र तो बढ़ रही है , पर सोच थक चुकी है ।।
इस चेहरे को देखते ही , बचपन के ख्वाबो में , मैं खो गया ।
और जैसे ही सुकून भरी नींद खुली , में फिर दुनिआ की इस भीड़ का हो गया ।।
दीपक ✍️