माँ का सफर

 

 

हर मां की अपनी एक जिंदगी होती है ! पहले उसकी शादी होती है , नए लोगों के बीच वो खुद को ढालती है ! फिर परिवार बड़ा होता है , बच्चे होते हैं , फिर बच्चों का पालना , उन्हें जिंदगी की समझ देना !! इक मां के नजरिए से , वो सारी जिंदगी क्या कुछ महसूस करती है , वही जज्बात इस कविता में बहुत ही छोटे तौर पर लिखे हैं ! हर महिला को समर्पित ❤️❤️❤️

 

 

9 महीने पेट में रखा , बस ऐसे ही वक़्त काट लिया |                                                        
शरीर तो अपना दिया ही मुझे , अपनी रूह को भी मुझसे बाँट लिया ||

 

तुझसे ही निकला हूँ , तेरा ही अंश हूँ !                                                                                       फिर क्यों कहते है सब , की मैं पापा का वंश हूँ ||

 

जहाँ तू खेली, पली, बड़ी हुई ,उस घर को एक झटके में तूने छोड़ दिया |                                         और बाकी की सारी जिंदगी बिताने के लिए इक अनजान घर से रिश्ता जोड़ लिया ||

 

नए घर में नए रिश्ते मिले , हर रिश्ते में बखूबी तूने खुद को ढाला  |                                                      और जो काम करना पहले शायद तुझे पसंद भी नहीं था ,, उस काम के लिए भी अब तूने वक़्त निकाला  ||

 

अच्छा जब में पैदा हुआ , तो सारी रात तुझे जगाता और दिन में मेरी नींद पूरी होती थी |                      तू तो सारा दिन घर का काम करती ,, इक बात बता , आखिर तू कब सोती थी ||

 

धुंदला धुंदला सा याद है आज भी वो पल ,, जब पहली बार स्कूल जाने पर मैं रोने लगा !                    और वहां तेरे अलावा इतने लोगों की भीड़ देखकर उस भीड़ में , मैं खुद को खोने लगा !!

 

 

फिर वक़्त गुजरा और मैं स्कूल जाने लगा ,तब ……..

 

सुबह सुबह गरमागरम परांठे खिलाना , उसके बाद बालों में भर भर के तेल लगाना |.                          फिर मुझे स्कूल का टिफ़िन और पानी की बोतल पकड़कर , तेरा घर के काम में लग जाना !!

 

कभी कभी तुझसे झूठ बोलकर दोस्तों के साथ निकल जाता था !                                                    पर जब कभी भी चोट लगती तो माँ शब्द ही बाहर आता था !!

 

गर्मियों के दिनों में अक्सर लाइट चली जाती थी !                                                                       और तू पूरी रात मुझपे पंखा करके , मुझे सुलाती थी !!

 

ये सिलसिला चलता रहा और वक़्त इतनी तेजी से गुजर गया !                                                    स्कूल कॉलेज और फिर नौकरी , हर पड़ाव तेरे साये में , मैं बखूबी पार कर गया ||

 

हाँ अब इतना बड़ा हो गया हूँ की ,, कभी कभी तुझे इग्नोर करता हूँ !                                              और जो काम शायद चुप रहकर भी हो सकता है , उसमें भी मैं शोर करता हूँ || 

 

तूने ही बात करना सिखाया और अब तुझसे ही बातचीत कम कर दी !                                                और जिन आँखों की रौशनी बनना था मुझे , वो आँखे ही मैंने नम कर दी ||

 

यकीनन गलत जरूर हूँ , पर तुझसे अलग नहीं हूँ !                                                                        भले ही लाख गलतियां करता हूँ मैं , पर तेरे लिए आज भी वही हूँ || 

 

लिखना तो बहुत चाहता हूँ , पर बस अब रहने देता हूँ !                                                                     बाकी बचे कुछ जज्बात ,, दिल में ही बहने देता हूँ !! 

 

शुक्रिया तो नहीं कह सकता , पर आखिर में तेरे लिए यही कहूंगा की ….

 

मेरी हर जिद पूरी की तूने और और गलत चीजों को डांटकर मना किया !                                          अपनी आँचल की छाओं में और प्यार भरी बाहों में पालकर ,, मुझे इंसान बना दिया , हां इंसान बना दिया ❤️❤️

 

दीपक ✍️

One thought on “माँ का सफर

  • Bht zada sundar likha hai Deepak. Kya baaten likhi hai, kitna sach hai ye. Kya comparison kiya hai, wah deepak waah.
    Aaj Sushant hota toh use bhi pasand ati. Kya likha hai, sabd ni mil re itna shor macha diya mera andar, ma ke liye pyar dugna, teegna kardiya mere andar❤

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